जाओ Poetry (page 15)

क्या आज उन से अपनी मुलाक़ात हो गई

राजेन्द्र नाथ रहबर

आइना सामने रखोगे तो याद आऊँगा

राजेन्द्र नाथ रहबर

हमें हमारी बीवियों से बचाओ

राजा मेहदी अली ख़ाँ

कोई पत्थर ही किसी सम्त से आया होता

राज नारायण राज़

दुआ ने काम किया है यक़ीं नहीं आता

राज कुमार क़ैस

तआरुफ़

राही मासूम रज़ा

कितनी दूर से चलते चलते ख़्वाब-नगर तक आई हूँ

इरम ज़ेहरा

ये ख़ौफ़ कम है मुझे और चमको जब तक हो

इक़बाल अशहर कुरेशी

तुम्हारी ख़ुश्बू थी हम-सफ़र तो हमारा लहजा ही दूसरा था

इक़बाल अशहर

ये किस से चाँदनी में हम ब-ज़ेर-ए-आसमाँ लिपटे

इंशा अल्लाह ख़ान

किस को हम-सफ़र समझें जो भी साथ चलते हैं

इंद्र मोहन मेहता कैफ़

दिन में जो साथ सब के हँसता था

इंद्र सराज़ी

रवाँ नदी के किनारे सड़क पे रुक जाना

इनाम कबीर

जैसा सोचो वैसा मतलब होता है

इनआम आज़मी

कोई तो है जो आहों में असर आने नहीं देता

इमरान-उल-हक़ चौहान

रफ़्ता रफ़्ता सब कुछ अच्छा हो जाएगा

इमरान शमशाद

वो शाम ढले तेरा मिलना वो तेरा हँसाना याद नहीं

इमरान साग़र

कब कहा मैं ने मुझे सारा ज़माना चाहिए

इमरान साग़र

रात चराग़ की महफ़िल में शामिल एक ज़माना था

इमदाद निज़ामी

कैसा आना कैसा जाना मेरे घर क्या आओगे

इम्दाद इमाम असर

यूँही उलझी रहने दो क्यूँ आफ़त सर पर लाते हो

इम्दाद इमाम असर

जफ़ाएँ होती हैं घुटता है दम ऐसा भी होता है

इम्दाद इमाम असर

जब ख़ुदा को जहाँ बसाना था

इम्दाद इमाम असर

नफ़्स-ए-सरकश को क़त्ल कर ऐ दिल

इमदाद अली बहर

चेहरे पर ख़ुश-हाली ले कर आता हूँ

इलियास बाबर आवान

अपना अपना दुख बतलाना होता है

इलियास बाबर आवान

ले चले हो तो कहीं दूर ही ले जाना मुझे

इकराम आज़म

पहनाई

इज्तिबा रिज़वी

तक़दीर-ए-वफ़ा का फूट जाना

इफ़्तिख़ार राग़िब

तक़दीर-ए-वफ़ा का फूट जाना

इफ़्तिख़ार राग़िब

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