कैसा आना कैसा जाना मेरे घर क्या आओगे
ग़ैरों के घर जाने से तुम फ़ुर्सत किस दिन पाते हो
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किसी का दिल को रहा इंतिज़ार सारी रात
सूली चढ़े जो यार के क़द पर फ़िदा न हो
ग़म नहीं मुझ को जो वक़्त-ए-इम्तिहाँ मारा गया
अपनी जाँ-बाज़ी का जिस दम इम्तिहाँ हो जाएगा
गुलशन में कौन बुलबुल-ए-नालाँ को दे पनाह
तेरी जानिब से मुझ पे क्या न हुआ
क्यूँ देखिए न हुस्न-ए-ख़ुदा-दाद की तरफ़
क़ैद-ए-तन से रूह है नाशाद क्या
पा रहा है दिल मुसीबत के मज़े
रोते हैं सुन के कहानी मेरी
झूटे वादों पर तुम्हारी जाएँ क्या
शैख़ के हाल पर तअस्सुफ़ है