जाओ Poetry (page 16)

अच्छे दिनों की आस लगा कर मैं ने ख़ुद को रोका है

इफ़्तिख़ार राग़िब

मैं भी बे-अंत हूँ और तू भी है गहरा सहरा

इफ़्तिख़ार मुग़ल

दश्त-ए-बे-सम्त में रुकना भी सफ़र ऐसा था

इफ़्तिख़ार बुख़ारी

सुब्ह सवेरे रन पड़ना है और घमसान का रन

इफ़्तिख़ार आरिफ़

शहर-आशोब

इफ़्तिख़ार आरिफ़

गुमनाम सिपाही की क़ब्र पर

इफ़्तिख़ार आरिफ़

वही प्यास है वही दश्त है वही घराना है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

थकन तो अगले सफ़र के लिए बहाना था

इफ़्तिख़ार आरिफ़

मौत की पहली अलामत साहिब

इदरीस बाबर

किसी के हाथ कहाँ ये ख़ज़ाना आता है

इदरीस बाबर

एक दिन ख़्वाब-नगर जाना है

इदरीस बाबर

चाहे सहरा में चाहे घर रहना

इबरत बहराईची

देखा तो कोई और था सोचा तो कोई और

इब्राहीम अश्क

नफ़रतें न अदावतें बाक़ी हैं

इब्न-ए-मुफ़्ती

कब लौटा है बहता पानी बिछड़ा साजन रूठा दोस्त

इब्न-ए-इंशा

इस बस्ती के इक कूचे में

इब्न-ए-इंशा

दिल इक कुटिया दश्त किनारे

इब्न-ए-इंशा

ऐ मतवालो! नाक़ों वालो!!

इब्न-ए-इंशा

'इंशा'-जी उठो अब कूच करो इस शहर में जी को लगाना क्या

इब्न-ए-इंशा

कहने की तो बात नहीं है लेकिन कहनी पड़ती है

हुसैन माजिद

लोगों ने आकाश से ऊँचा जा कर तमग़े पाए

हुसैन माजिद

फ़साना अब कोई अंजाम पाना चाहता है

हुमैरा राहत

आप के तग़ाफ़ुल का सिलसिला पुराना है

हिना तैमूरी

सब कुछ खो कर मौज उड़ाना इश्क़ में सीखा

हिलाल फ़रीद

हम ख़ुद भी हुए नादिम जब हर्फ़-ए-दुआ निकला

हिलाल फ़रीद

आया भी कोई दिल में गया भी कोई दिल से

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

मुझे फ़रेब-ए-वफ़ा दे के दम में लाना था

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

आरास्ता बज़्म-ए-ऐश हुई अब रिंद पिएँगे खुल खुल के

हीरा लाल फ़लक देहलवी

ये जो हर शय में तिरी जल्वागरी है ऐ दोस्त

हज़ार लखनवी

हम को अब भी नहर पर जा कर नहाना याद है

हातिम भट्टी

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