मौत की पहली अलामत साहिब
यही एहसास का मर जाना है
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दोस्त कुछ और भी हैं तेरे अलावा मिरे दोस्त
इक दिया दिल की रौशनी का सफ़ीर
मैं उसे सोचता रहा या'नी
कोई भी दिल में ज़रा जम के ख़ाक उड़ाता तो
ख़मोश रह के ज़वाल-ए-सुख़न का ग़म किए जाएँ
ख़ेमगी-ए-शब है तिश्नगी दिन है
इस से फूलों वाले भी आजिज़ आ गए हैं
फूल है जो किताब में अस्ल है कि ख़्वाब है
इस अँधेरे में जब कोई भी न था
मैं जानता हूँ ये मुमकिन नहीं मगर ऐ दोस्त
रब्त असीरों को अभी उस गुल-ए-तर से कम है
किसी के हाथ कहाँ ये ख़ज़ाना आता है