मर गया ख़ास तौर पर मैं भी
जिस तरह आम लोग मरते हैं
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एक दिन ख़्वाब-नगर जाना है
मिरे क़रीब ही महताब देख सकता था
मैं जिन्हें याद हूँ अब तक यही कहते होंगे
कहानियों ने मिरी आदतें बिगाड़ी थीं
दोस्त कुछ और भी हैं तेरे अलावा मिरे दोस्त
इस से फूलों वाले भी आजिज़ आ गए हैं
तू भी हो मैं भी हूँ इक जगह पे और वक़्त भी हो
कोई भी दिल में ज़रा जम के ख़ाक उड़ाता तो
और वहशत है इरादा मेरा
अब मसाफ़त में तो आराम नहीं आ सकता
मैं जानता हूँ ये मुमकिन नहीं मगर ऐ दोस्त
धूल उड़ती है तो याद आता है कुछ