धूल उड़ती है तो याद आता है कुछ
मिलता-जुलता था लिबादा मेरा
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काम की बात पूछते क्या हो
दिल कोई आईना नहीं टूट के रह गया तो फिर
सो दुनिया में जीना बसना दिल को मरने मत देना
मैं जिन्हें याद हूँ अब तक यही कहते होंगे
आज तो जैसे दिन के साथ दिल भी ग़ुरूब हो गया
दिल में है इत्तिफ़ाक़ से दश्त भी घर के साथ साथ
और वहशत है इरादा मेरा
ख़मोश रह के ज़वाल-ए-सुख़न का ग़म किए जाएँ
देखा नहीं चाँद ने पलट कर
तिरी गली से गुज़रने को सर झुकाए हुए
इस से पहले कि ज़मीं-ज़ाद शरारत कर जाएँ
देख न इस तरह गुज़ार अर्सा-ए-चश्म से मुझे