काम की बात पूछते क्या हो
कुछ हुआ कुछ नहीं हुआ यानी
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मैं जानता हूँ ये मुमकिन नहीं मगर ऐ दोस्त
एक दिन ख़्वाब-नगर जाना है
सो दुनिया में जीना बसना दिल को मरने मत देना
हाँ ऐ गुबार-ए-आश्ना मैं भी था हम-सफ़र तिरा
वो शहर इत्तिफ़ाक़ से नहीं मिला
ख़ेमगी-ए-शब है तिश्नगी दिन है
मैं उसे सोचता रहा या'नी
यहाँ से चारों तरफ़ रास्ते निकलते हैं
मौत की पहली अलामत साहिब
मौत उकता चुकी रीहरसल में
वो बहुत दूर है मगर मिरे पास
रब्त असीरों को अभी उस गुल-ए-तर से कम है