वो बहुत दूर है मगर मिरे पास
एक ही सम्त का कराया है
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ख़ुद-कुशी भी नहीं मिरे बस में
यहाँ से चारों तरफ़ रास्ते निकलते हैं
दोस्त कुछ और भी हैं तेरे अलावा मिरे दोस्त
तमाम दोस्त अलाव के गिर्द जम्अ थे और
इस अँधेरे में जब कोई भी न था
मैं जिन्हें याद हूँ अब तक यही कहते होंगे
गुल-ए-सुख़न से अँधेरों में ताब-कारी कर
दिल के घुटने को इशारा समझो
पर नहीं होते ख़यालों के तो फिर
ख़मोश रह के ज़वाल-ए-सुख़न का ग़म किए जाएँ
हाथ दुनिया का भी है दिल की ख़राबी में बहुत
वो मुझे देख कर ख़मोश रहा