तमाम दोस्त अलाव के गिर्द जम्अ थे और
हर एक अपनी कहानी सुनाने वाला था
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
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Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
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वो शहर इत्तिफ़ाक़ से नहीं मिला
देखा नहीं चाँद ने पलट कर
किधर गया वो कूज़ा-गर ख़बर नहीं
मिरे सवाल वही टूट-फूट की ज़द में
मौत की पहली अलामत साहिब
ये किरन कहीं मिरे दिल में आग लगा न दे
मौत उकता चुकी रीहरसल में
मैं जिन्हें याद हूँ अब तक यही कहते होंगे
दोस्त कुछ और भी हैं तेरे अलावा मिरे दोस्त
इस से फूलों वाले भी आजिज़ आ गए हैं
तिरी गली से गुज़रने को सर झुकाए हुए
वो मुझे देख कर ख़मोश रहा