किधर गया वो कूज़ा-गर ख़बर नहीं
कोई सुराग़ चाक से नहीं मिला
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दिल के घुटने को इशारा समझो
एक दिन ख़्वाब-नगर जाना है
वो गुल वो ख़्वाब-शार भी नहीं रहा
मिरे सवाल वही टूट-फूट की ज़द में
इस से पहले कि ज़मीं-ज़ाद शरारत कर जाएँ
वो शहर इत्तिफ़ाक़ से नहीं मिला
ये किरन कहीं मिरे दिल में आग लगा न दे
मौत उकता चुकी रीहरसल में
धूल उड़ती है तो याद आता है कुछ
फूल है जो किताब में अस्ल है कि ख़्वाब है
यूँही आती नहीं हवा मुझ में
मैं जिन्हें याद हूँ अब तक यही कहते होंगे