तू भी हो मैं भी हूँ इक जगह पे और वक़्त भी हो
इतनी गुंजाइशें रखती नहीं दुनिया मिरे दोस्त!
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मौत उकता चुकी रीहरसल में
यूँही आती नहीं हवा मुझ में
दिल कोई आईना नहीं टूट के रह गया तो फिर
धूल उड़ती है तो याद आता है कुछ
देखा नहीं चाँद ने पलट कर
वो मुझे देख कर ख़मोश रहा
कहानियों ने मिरी आदतें बिगाड़ी थीं
वो बहुत दूर है मगर मिरे पास
देख न इस तरह गुज़ार अर्सा-ए-चश्म से मुझे
करते फिरते हैं ग़ज़ालाँ तिरा चर्चा साहब
किधर गया वो कूज़ा-गर ख़बर नहीं
मिरे क़रीब ही महताब देख सकता था