वही न हो कि ये सब लोग साँस लेने लगें
अमीर-ए-शहर कोई और ख़ौफ़ तारी कर
Gulzar
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पर नहीं होते ख़यालों के तो फिर
किधर गया वो कूज़ा-गर ख़बर नहीं
गुल-ए-सुख़न से अँधेरों में ताब-कारी कर
मर गया ख़ास तौर पर मैं भी
मैं जिन्हें याद हूँ अब तक यही कहते होंगे
दर्द का दिल का शाम का बज़्म का मय का जाम का
दिल की इक एक ख़राबी का सबब जानते हैं
देखा नहीं चाँद ने पलट कर
इस क़दर मत उदास हो जैसे
तमाम दोस्त अलाव के गिर्द जम्अ थे और
वो शहर इत्तिफ़ाक़ से नहीं मिला
काम की बात पूछते क्या हो