वही ख़्वाब है वही बाग़ है वही वक़्त है
मगर इस में उस के बग़ैर जी नहीं लग रहा
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मिरे सवाल वही टूट-फूट की ज़द में
ये किरन कहीं मिरे दिल में आग लगा न दे
ख़ेमगी-ए-शब है तिश्नगी दिन है
दिल की इक एक ख़राबी का सबब जानते हैं
हाथ दुनिया का भी है दिल की ख़राबी में बहुत
तमाम दोस्त अलाव के गिर्द जम्अ थे और
कहानियों ने मिरी आदतें बिगाड़ी थीं
आज तो जैसे दिन के साथ दिल भी ग़ुरूब हो गया
यहाँ से चारों तरफ़ रास्ते निकलते हैं
काम की बात पूछते क्या हो
हाँ ऐ गुबार-ए-आश्ना मैं भी था हम-सफ़र तिरा
इस से पहले कि ज़मीं-ज़ाद शरारत कर जाएँ