इस क़दर मत उदास हो जैसे
ये मोहब्बत का आख़िरी दिन है
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दर्द का दिल का शाम का बज़्म का मय का जाम का
गुल-ए-सुख़न से अँधेरों में ताब-कारी कर
मैं उसे सोचता रहा या'नी
देख न इस तरह गुज़ार अर्सा-ए-चश्म से मुझे
धूल उड़ती है तो याद आता है कुछ
अब मसाफ़त में तो आराम नहीं आ सकता
वो बहुत दूर है मगर मिरे पास
तमाम दोस्त अलाव के गिर्द जम्अ थे और
तिरी गली से गुज़रने को सर झुकाए हुए
वो शहर इत्तिफ़ाक़ से नहीं मिला
वो गुल वो ख़्वाब-शार भी नहीं रहा
दिल के घुटने को इशारा समझो