जुगनू Poetry (page 2)
एक बुज़ुर्ग शायर परिंदे का तजरबा
ताबिश कमाल
झील आँखें थीं गुलाबों सी जबीं रखता था
सय्यद सग़ीर सफ़ी
कुछ इस अंदाज़ से हैं दश्त में आहू निकल आए
सय्यद मंज़ूर हैदर
मुँह अँधेरे तेरी यादों से निकलना है मुझे
स्वप्निल तिवारी
सब तमाशे हो चुके अब घर चलो
सुहैल अहमद ज़ैदी
उस ने सोचा भी नहीं था कभी ऐसा होगा
सिद्दीक़ मुजीबी
ये रोज़ ओ शब का तसलसुल रवाँ-दवाँ ही रहा
सिद्दीक़ शाहिद
फ़िराक़ ओ वस्ल से हट कर कोई रिश्ता हमारा हो
सिद्दीक़ शाहिद
हूर हो या कोई परी हो तुम
शुजाअत इक़बाल
इतना नूर कहाँ से लाऊँ तारीकी के इस जंगल में
शोएब निज़ाम
मिल गया जब वो नगीं फिर ख़ूबी-ए-तक़दीर से
शोएब निज़ाम
दुनिया से दुनिया में रह कर कैसे किनारा कर रक्खा है
शोएब निज़ाम
दिल में शोला था सो आँखों में नमी बनता गया
शहपर रसूल
रतजगा
शाज़ तमकनत
आबला-पाई से वीराना महक जाता है
शाज़ तमकनत
तिरी साज़िशों से ही जुगनू मरे
शाैकत हाशमी
दर-पा-ए-अजल
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
अजनबी बन के तो गुज़रा मत कर
शम्स तबरेज़ी
नींद आँखों में समो लूँ तो सियह रात कटे
शमीम तारिक़
पलकों पे लरज़ते रहे आँसू की तरह हम
शकील शम्सी
किसी की आँख से आँसू टपक रहे होंगे
शकील शम्सी
ये तिरी ख़ल्क़-नवाज़ी का तक़ाज़ा भी नहीं
शकील जमाली
अब बंद जो इस अब्र-ए-गुहर-बार को लग जाए
शकील जमाली
तुझ को सोचों तो तिरे जिस्म की ख़ुशबू आए
शकील आज़मी
हवा-ए-शब से न बुझते हैं और न जलते हैं
शकेब जलाली
अब आप रह-ए-दिल जो कुशादा नहीं रखते
शकेब जलाली
मुंतज़िर दश्त-ए-दिल-ओ-जाँ है कि आहू आए
शहज़ाद अहमद
ला-ज़वाल सुकूत
शहरयार
लोग हैरान हैं हम क्यूँ ये किया करते हैं
शाहिद लतीफ़
कुछ देर काली रात के पहलू में लेट के
शाहिद कबीर
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