कहानी Poetry (page 8)

कुछ तो ठहरे हुए दरिया में रवानी करें हम

सालिम सलीम

जब से उन की मेहरबानी हो गई

सलीम रज़ा रीवा

बुझ गए शो'ले धुआँ आँखों को पानी दे गया

सलीम शाहिद

अब शहर की और दश्त की है एक कहानी

सलीम शाहिद

ज़लील-ओ-ख़्वार होती जा रही है

सलीम मुहीउद्दीन

कुछ इस तरह से वो शामिल हुआ कहानी में

सलीम कौसर

ख़ामोश सही मरकज़ी किरदार तो हम थे

सलीम कौसर

ये लोग जिस से अब इंकार करना चाहते हैं

सलीम कौसर

वो आँखें जिन से मुलाक़ात इक बहाना हुआ

सलीम कौसर

तारे जो कभी अश्क-फ़िशानी से निकलते

सलीम कौसर

कहीं तुम अपनी क़िस्मत का लिखा तब्दील कर लेते

सलीम कौसर

चराग़-ए-याद की लौ हम-सफ़र कहाँ तक है

सलीम कौसर

ज़ुल्फ़-ए-शब-रंग जो बनाई है

सख़ी लख़नवी

ज़ख़्म खुले पड़ते हैं दिल के मौसम है ये बहारों का

सज्जाद बाक़र रिज़वी

हज़ार शुक्र कभी तेरा आसरा न गया

सज्जाद बाक़र रिज़वी

अक्सर बैठे तन्हाई की ज़ुल्फ़ें हम सुलझाते हैं

सज्जाद बाक़र रिज़वी

तुझे खो कर मोहब्बत को ज़ियादा कर लिया मैं ने

सज्जाद बलूच

तुझे खो कर मोहब्बत को ज़ियादा कर लिया मैं ने

सज्जाद बलूच

दिखाई देंगी सभी मुम्किनात काग़ज़ पर

सज्जाद बलूच

ख़ुशबू है शरारत है रंगीन जवानी है

सैफ़ी प्रेमी

बेचैन हूँ ख़ूँनाबा-फ़िशानी में घिरा हूँ

सैफ़ ज़ुल्फ़ी

फ़िक्र-ए-ज़र में बिलकता हुआ आदमी

साहिर शेवी

सर-ज़मीन-ए-यास

साहिर लुधियानवी

मुझे सोचने दे

साहिर लुधियानवी

मैं पल दो पल का शाइ'र हूँ

साहिर लुधियानवी

नौ-ब-नौ एक उमडता हुआ तूफ़ान था मैं

साहिल अहमद

नींद इन आँखों में बन कर आए कोई

साहिबा शहरयार

मुझ को हर लम्हा नई एक कहानी देगा

साहिबा शहरयार

न जाने क्यूँ सदा होता है एक सा अंजाम

सग़ीर मलाल

अब अपनी हक़ीक़त भी 'साग़र' बे-रब्त कहानी लगती है

साग़र सिद्दीक़ी

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