व्यवसाय Poetry (page 2)

न कुरेदूँ इश्क़ के राज़ को मुझे एहतियात-ए-कलाम है

सिराज लखनवी

कभी वो रंज के साँचे में ढाल देता है

शोभा कुक्कल

ये धुँद ये ग़ुबार छटे तो पता चले

शोएब निज़ाम

ज़मीं का क़र्ज़

शाज़ तमकनत

किस फ़िक्र किस ख़याल में खोया हुआ सा है

शहरयार

पाप

शहनाज़ नबी

सोचता है किस लिए तू मेरे यार दे मुझे

शाहिद कमाल

गुलाब-ब-कफ़

शाहीन ग़ाज़ीपुरी

हुआ अश्क-ए-गुलगूँ बहार-ए-गरेबाँ

शाह नसीर

हमारे पास था जो कुछ लुटा के बैठ रहे

शफ़क़त तनवीर मिर्ज़ा

हर रोज़ राह तकती हैं मेरे सिंघार की

शबनम शकील

हैं मनाज़िर सब बहम-पर्दा नज़र बाक़ी नहीं

शबनम शकील

गए बरस की यही बात यादगार रही

शबनम शकील

हर लम्हे मैं सदियों का अफ़्साना होता है

सरफ़राज़ ख़ालिद

मोटर-रिक्शा

सरफ़राज़ शाहिद

जश्न-ए-आज़ादी

सरफ़राज़ शाहिद

ख़राब हो गया जब मेरे जिस्म का काग़ज़

संजय मिश्रा शौक़

कुछ भी नहीं है बाक़ी बाज़ार चल रहा है

सालिम सलीम

मौसम का ज़हर दाग़ बने क्यूँ लिबास पर

सलीम शाहिद

ग़ुबार होती सदी के सहराओं से उभरते हुए ज़माने

सलीम कौसर

एक तो दुनिया का कारोबार है

सलीम फ़राज़

तुझे मैं मिलूँ तो कहाँ मिलूँ मिरा तुझ से रब्त मुहाल है

सज्जाद बाक़र रिज़वी

राएगाँ हो रही थी तंहाई

साजिद हमीद

रूह को पहले ख़ाकसार किया

साजिद हमीद

औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया

साहिर लुधियानवी

सवाल-ए-सुब्ह-ए-चमन ज़ुल्मत-ए-ख़िज़ाँ से उठा

सहबा अख़्तर

उर्दू-ए-मुअ'ल्ला

सफ़ी लखनवी

ये कारोबार-ए-मोहब्बत है तुम न समझोगे

साबिर

मुझे क़रार भँवर में उसे किनारे में

साबिर

ये मत भुला कि यहाँ जिस क़दर उजाले हैं

सअादत बाँदवी

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