व्यवसाय Poetry (page 4)

है किस क़दर हलाक-ए-फ़रेब-ए-वफ़ा-ए-गुल

ग़ालिब

बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं

फ़िराक़ गोरखपुरी

सब्ज़ मौसम की रिफ़ाक़त उस का कारोबार है

फ़ारूक़ अंजुम

एक ग़ज़ल कहते हैं इक कैफ़िय्यत तारी कर लेते हैं

फ़रहत एहसास

गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ज़िंदगी

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मैं ने कहा कि शहर के हक़ में दुआ करो

दिलावर फ़िगार

है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है

बशीर बद्र

है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है

बशीर बद्र

प्यार के बंधन ख़ून के रिश्ते टूट गए ख़्वाबों की तरह

बशर नवाज़

क्या क्या लोग ख़ुशी से अपनी बिकने पर तय्यार हुए

बशर नवाज़

जुदाई हद से बढ़ी तो विसाल हो ही गया

अतीक़ इलाहाबादी

कहाँ गए शब-ए-महताब के जमाल-ज़दा

अताउर्रहमान जमील

ग़ज़ल-पैमाई

असरार जामई

मिलने को तुझ से दिल तो मिरा बे-क़रार है

आसिफ़ुद्दौला

आलाम-ए-रोज़गार को आसाँ बना दिया

असग़र गोंडवी

हम-साई

असद जाफ़री

जब भी दुश्मन बन के इस ने वार किया

आरिफ़ शफ़ीक़

वो जानता है उस की दलीलों में दम नहीं

अक़ील नोमानी

जो दिन था एक मुसीबत तो रात भारी थी

अमजद इस्लाम अमजद

ख़्वाब जो बिखर गए

आमिर उस्मानी

ख़ूगर-ए-रू-ए-ख़ुश-जमाल हैं हम

अली सरदार जाफ़री

इक सुब्ह है जो हुई नहीं है

अली सरदार जाफ़री

चले थे भर के रेत जब सफ़र की जिस्म-ओ-जाँ में हम

अलीम अफ़सर

हम भी गुज़र गए यहाँ कुछ पल गुज़ार के

अजय सहाब

इल्म भी आज़ार लगता है मुझे

अहमद सोज़

होता न कोई कार-ए-ज़माना मिरे सुपुर्द

अहमद रिज़वान

आँखें बनाता दश्त की वुसअत को देखता

अहमद रिज़वान

कोई जल में ख़ुश है कोई जाल में

अहमद जावेद

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