होता न कोई कार-ए-ज़माना मिरे सुपुर्द
बस अपने कारोबार-ए-मोहब्बत को देखता
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Gulzar
Javed Akhtar
Anwar Masood
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(825) Peoples Rate This
ख़ाक देखी है शफ़क़-ज़ार फ़लक देखा है
क्या बात करूँ जो बातें तुम से करनी थीं
आता ही नहीं होने का यक़ीं क्या बात करूँ
शब ढले गुम्बद-ए-असरार में आ जाता है
एक मुद्दत से उसे देख रहा हूँ 'अहमद'
आँखें बनाता दश्त की वुसअत को देखता
किसी को छोड़ देता हूँ किसी के साथ चलता हूँ
ये कौन बोलता है मिरे दिल के अंदरूँ
उड़ती है ख़ाक दिल के दरीचों के आस-पास
मैं ख़ाक हो रहा हूँ यहाँ ख़ाक-दान में
अजनबी लोग हैं मैं जिन में घिरा रहता हूँ