नाव Poetry (page 9)

मंज़र से उधर ख़्वाब की पस्पाई से आगे

दिलावर अली आज़र

दूर के एक नज़ारे से निकल कर आई

दिलावर अली आज़र

कहाँ गई एहसास की ख़ुशबू फ़ना हुए जज़्बात कहाँ

देवमणि पांडेय

मिरी बे-क़रारी मिरी आह-ओ-ज़ारी ये वहशत नहीं है तो फिर और क्या है

द्वारका दास शोला

अपनी बेचारगी पे रो न सके

द्वारका दास शोला

हुस्न-ए-अज़ल का जल्वा हमारी नज़र में है

दत्तात्रिया कैफ़ी

कहीं जमाल-ए-अज़ल हम को रूनुमा न मिला

दर्शन सिंह

जब आदमी मुद्दआ-ए-हक़ है तो क्या कहें मुद्दआ' कहाँ है

दर्शन सिंह

रब्त है नाज़-ए-बुताँ को तो मिरी जान के साथ

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

ये बात बात में क्या नाज़ुकी निकलती है

दाग़ देहलवी

ना-रवा कहिए ना-सज़ा कहिए

दाग़ देहलवी

किसी ने बा-वफ़ा समझा किसी ने बेवफ़ा समझा

डी. राज कँवल

क़रार खो के चले बे-क़रार हो के चले

चरख़ चिन्योटी

क़रार खो के चले बे-क़रार हो के चले

चरख़ चिन्योटी

पास होने का इशारा मिल गया

बबल्स होरा सबा

वही होती है रहबर जो तमन्ना दिल में होती है

बिस्मिल सईदी

मिरी ही बात सुनती है मुझी से बात करती है

भारत भूषण पन्त

ख़्वाब जीने नहीं देंगे तुझे ख़्वाबों से निकल

भारत भूषण पन्त

जुस्तुजू मेरी कहीं थी और मैं भटका कहीं

भारत भूषण पन्त

दीद की तमन्ना में आँख भर के रोए थे

भारत भूषण पन्त

ख़ुद अपने जुर्म का मुजरिम को ए'तिराफ़ न था

बेकल उत्साही

आता है जो तूफ़ाँ आने दे कश्ती का ख़ुदा ख़ुद हाफ़िज़ है

बहज़ाद लखनवी

यूँ तो जो चाहे यहाँ साहब-ए-महफ़िल हो जाए

बहज़ाद लखनवी

ऐ जज़्बा-ए-दिल गर मैं चाहूँ हर चीज़ मुक़ाबिल आ जाए

बहज़ाद लखनवी

हक़ पसंदों से जहाँ बर-सर-ए-पैकार सही

बेबाक भोजपुरी

फ़स्ल-ए-बहार जाने ये क्या गुल कतर गई

बेबाक भोजपुरी

मैं जितनी देर तिरी याद में उदास रहा

बशीर फ़ारूक़ी

दस्त-ए-नासेह जो मिरे जेब को इस बार लगा

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

बुझी बुझी है सदा-ए-नग़्मा कहीं कहीं हैं रबाब रौशन

बाक़र मेहदी

समाअ'त के लिए इक इम्तिहाँ है

बकुल देव

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