नाव Poetry (page 2)

हुआ ज़ाहिर ख़त-ए-रू-ए-निगार आहिस्ता-आहिस्ता

वली मोहम्मद वली

गरेबाँ से तिरे किस ने निकाला सुब्ह-ए-ख़ंदाँ को

वहीदुद्दीन सलीम

गरेबाँ से तिरे किस ने निकाला सुब्ह-ए-ख़ंदाँ को

वहीदुद्दीन सलीम

शफ़्फ़ाफियाँ

वहीद अहमद

क़ुर्ब-ए-मंज़िल टूट जाए हौसला अच्छा नहीं

वफ़ा सिद्दीक़ी

नम आँखों में क्या कर लेगा ग़ुस्सा देखेंगे

विजय शर्मा अर्श

बना कर ख़ुद को जिस ने इक भला इंसान रक्खा है

वली मदनी

बाहर बाहर सन्नाटा है अंदर अंदर शोर बहुत

उमर अंसारी

सुना ये था बहुत आसूदा हैं साहिल के बाशिंदे

उमैर मंज़र

कभी इक़रार होना था कभी इंकार होना था

उमैर मंज़र

वो आई शाम-ए-ग़म वक़्फ़-ए-बला होने का वक़्त आया

तिलोकचंद महरूम

किसी की याद को हम ज़ीस्त का हासिल समझते हैं

तिलोकचंद महरूम

ख़ाक होती हुई हस्ती से उठा

तौक़ीर तक़ी

जैसे कश्ती और उस पर बादबाँ फैले हुए

तस्लीम इलाही ज़ुल्फ़ी

जैसे कश्ती और इस पर बादबाँ फैले हुए

तस्लीम इलाही ज़ुल्फ़ी

टूटी है ये कश्ती तो मिरे साथ सफ़र को

तनवीर अंजुम

सूरज सारा शहर डराता रहता है

तनवीर अंजुम

इज़्हार-ए-जुनूँ बर-सर-ए-बाज़ार हुआ है

तनवीर अंजुम

मैं कि काग़ज़ की एक कश्ती हूँ

तहज़ीब हाफ़ी

पराई आग पे रोटी नहीं बनाऊँगा

तहज़ीब हाफ़ी

इक तिरा हिज्र दाइमी है मुझे

तहज़ीब हाफ़ी

सुकून-ए-दिल में वो बन के जब इंतिशार उतरा तो मैं ने देखा

ताहिर फ़राज़

लब-ए-मंतिक़ रहे कोई न चश्म-लन-तरानी हो

तफ़ज़ील अहमद

अजब यक़ीन सा उस शख़्स के गुमान में था

ताबिश कमाल

शरह-ए-जाँ-सोज़-ए-ग़म-ए-अर्ज़-ए-वफ़ा क्या करते

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

मौज-ए-दरिया से बला की चाहिए कश्ती मुझे

तअशशुक़ लखनवी

बहुत मुज़िर दिल-ए-आशिक़ को आह होती है

तअशशुक़ लखनवी

वो जो मिलता था कभी मुझ से बहारों की तरह

सय्यदा नफ़ीस बानो शम्अ

हुस्न-ए-यूसुफ़ किसे कहते हैं ज़ुलेख़ा क्या है

सय्यदा नफ़ीस बानो शम्अ

ज़मीन-ए-इश्क़ पे ऐ अब्र-ए-ए'तिबार बरस

सय्यद तम्जीद हैदर तम्जीद

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