धूल Poetry (page 7)

खुलने ही लगे उन पर असरार-ए-शबाब आख़िर

वासिफ़ देहलवी

कभी दर्द-आश्ना तेरा भी क़ल्ब शादमाँ होगा

वासिफ़ देहलवी

इज़्ज़त उन्हें मिली वही आख़िर बड़े रहे

वासिफ़ देहलवी

हम-सफ़र थम तो सही दिल को सँभालूँ तो चलूँ

वासिफ़ देहलवी

बुझते हुए चराग़ फ़रोज़ाँ करेंगे हम

वासिफ़ देहलवी

सो जाऊँ पर कैसे सोया जा सकता है

वसीम ताशिफ़

शाख़ से कट कर अलग होने का हम को ग़म नहीं

वसीम मलिक

ऐ भँवर तेरी तरह बेबाक हो जाएँगे हम

वसीम मलिक

क़तरे गिरे जो कुछ अरक़-ए-इंफ़िआ'ल के

वसीम ख़ैराबादी

पत्थर नज़र थी वाइ'ज़-ए-ख़ाना-ख़राब की

वसीम ख़ैराबादी

इन्हें तो ख़ाक में मिलना ही था कि मेरे थे

वसीम बरेलवी

सभी का धूप से बचने को सर नहीं होता

वसीम बरेलवी

भला ग़मों से कहाँ हार जाने वाले थे

वसीम बरेलवी

ज़ख़्म खाते हैं जी जलाते हैं

वक़ार ख़ान

मज़ा था हम को जो बुलबुल से दू-बदू करते

वक़ार हिल्म सय्यद नगलवी

कुएँ जो पानी की बिन प्यास चाह रखते हैं

वक़ार हिल्म सय्यद नगलवी

वो निगाह मिल के निगाह से ब-अदा-ए-ख़ास झिझक गई

वक़ार बिजनोरी

मुदावा

वामिक़ जौनपुरी

ज़हराब पीने वाले अमर हो के रह गए

वामिक़ जौनपुरी

वो तन्हा मेरे ही दरपय नहीं है

वामिक़ जौनपुरी

तुझ से मिल कर दिल में रह जाती है अरमानों की बात

वामिक़ जौनपुरी

हुज़ूर-ए-यार भी आज़ुर्दगी नहीं जाती

वामिक़ जौनपुरी

हो रही है दर-ब-दर ऐसी जबीं-साई कि बस

वामिक़ जौनपुरी

नक़्काश-ए-अज़ल ने तो सर-ए-काग़ज़-ए-बाद आह

वलीउल्लाह मुहिब

सनम ने जब लब-ए-गौहर-फ़शान खोल दिए

वलीउल्लाह मुहिब

पहचाने तू हर-दम वही हर आन वही है

वलीउल्लाह मुहिब

नहीं दुनिया में सिवा ख़ार-ओ-ख़स-ए-कूचा-ए-दोस्त

वलीउल्लाह मुहिब

मोहब्बत से तरीक़-ए-दोस्ती से चाह से माँगो

वलीउल्लाह मुहिब

किया बाग़-ए-जहाँ में नाम उन का सर्व कह कह कर

वलीउल्लाह मुहिब

जिसे गर्म-इख़्तिलाती की लगा दे दिल में तू आतिश

वलीउल्लाह मुहिब

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