शाख़ से कट कर अलग होने का हम को ग़म नहीं
फूल हैं ख़ुशबू लुटा कर ख़ाक हो जाएँगे हम
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मफ़रूर कभी ख़ुद पर शर्मिंदा नज़र आए
कोई दस्तक कोई आहट न सदा है कोई
ऐ भँवर तेरी तरह बेबाक हो जाएँगे हम
कल साथ था कोई तो दर ओ बाम थे रौशन
लुत्फ़ ये है कि उसी शख़्स के मम्नून हैं हम
जो शख़्स मिरा दस्त-ए-हुनर काट रहा है
लगता है जुदा सब से किरदार 'वसीम' उस का
हम-सफ़र तू ने परों को जो मिरे काटा है