लुत्फ़ ये है कि उसी शख़्स के मम्नून हैं हम
जिस की तलवार ने क़िस्तों में हमें काटा है
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कोई दस्तक कोई आहट न सदा है कोई
शाख़ से कट कर अलग होने का हम को ग़म नहीं
लगता है जुदा सब से किरदार 'वसीम' उस का
ऐ भँवर तेरी तरह बेबाक हो जाएँगे हम
हम-सफ़र तू ने परों को जो मिरे काटा है
मफ़रूर कभी ख़ुद पर शर्मिंदा नज़र आए
जो शख़्स मिरा दस्त-ए-हुनर काट रहा है
कल साथ था कोई तो दर ओ बाम थे रौशन