कोई दस्तक कोई आहट न सदा है कोई
दूर तक रूह में फैला हुआ सन्नाटा है
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Jaun Eliya
Anwar Masood
Javed Akhtar
Gulzar
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(744) Peoples Rate This
लगता है जुदा सब से किरदार 'वसीम' उस का
ऐ भँवर तेरी तरह बेबाक हो जाएँगे हम
हम-सफ़र तू ने परों को जो मिरे काटा है
शाख़ से कट कर अलग होने का हम को ग़म नहीं
कल साथ था कोई तो दर ओ बाम थे रौशन
मफ़रूर कभी ख़ुद पर शर्मिंदा नज़र आए
जो शख़्स मिरा दस्त-ए-हुनर काट रहा है
लुत्फ़ ये है कि उसी शख़्स के मम्नून हैं हम