अंतरिक्ष Poetry (page 3)

भटक गया कि मंज़िलों का वो सुराग़ पा गया

शहरयार

किताब गुमराह कर रही है

शहराम सर्मदी

ख़ला सा कहीं है

शहराम सर्मदी

याद की बस्ती का यूँ तो हर मकाँ ख़ाली हुआ

शहराम सर्मदी

फ़ज़ा होती ग़ुबार-आलूदा सूरज डूबता होता

शहराम सर्मदी

ब-राह-ए-रास्त नहीं फिर भी राब्ता सा है

शहराम सर्मदी

बदल जाएगा सब कुछ ये तमाशा भी नहीं होगा

शहराम सर्मदी

अजीब ख़ौफ़ है जज़्बों की बे-लिबासी का

शहनाज़ नबी

ये जो इज़हार करना होता है

शाहिद ज़की

ग़ुंचा ग़ुंचा मौसम-ए-रंग-ए-अदा में क़ैद था

शाहीन बद्र

वफ़ा का शौक़ ये किस इंतिहा में ले आया

शहबाज़ ख़्वाजा

रंगों लफ़्ज़ों आवाज़ों से सारे रिश्ते टूट गए

शफ़क़त तनवीर मिर्ज़ा

नज़्म

शबनम अशाई

ग़ुलाम वहम ओ गुमाँ का नहीं यक़ीं का हूँ

सय्यद नसीर शाह

''ना-गहाँ'' और ''बे-निहायत''

सत्यपाल आनंद

वही है दश्त-ए-सफ़र रहगुज़र से आगे भी

सत्तार सय्यद

निगाह-ए-ख़ाक! ज़रा पैराहन बदलना तो

सरवत ज़ेहरा

रौशनी रंगों में सिमटा हुआ धोका ही न हो

सरमद सहबाई

जदीद-तरीन आदमी-नामा

सरफ़राज़ शाहिद

धड़कनें बन के जो सीने में रहा करता था

सलीम शुजाअ अंसारी

हंगामा-ए-सुकूत बपा कर चुके हैं हम

सालिम सलीम

साँस लेने से भी भरता नहीं सीने का ख़ला

सलीम कौसर

इक घड़ी वस्ल की बे-वस्ल हुई है मुझ में

सलीम कौसर

आख़िरी पड़ाव

सलीम फ़िगार

लम्हा-ए-रफ़्ता का दिल में ज़ख़्म सा बन जाएगा

सलीम अहमद

इक दर्द सब के दर्द का मज़हर लगा मुझे

सज्जाद बाबर

जागा है कच्ची नींद से मत छेड़िए उसे

सैफ़ सहसराम

शहज़ादे

साहिर लुधियानवी

नया सफ़र है पुराने चराग़ गुल कर दो

साहिर लुधियानवी

मिरे अहद के हसीनो

साहिर लुधियानवी

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