साँस लेने से भी भरता नहीं सीने का ख़ला
जाने क्या शय है जो बे-दख़्ल हुई है मुझ में
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वो जिन के नक़्श-ए-क़दम देखने में आते हैं
इंतिज़ार और दस्तकों के दरमियाँ कटती है उम्र
कहानी लिखते हुए दास्ताँ सुनाते हुए
अजनबी हैरान मत होना कि दर खुलता नहीं
क्या बताएँ फ़स्ल-ए-बे-ख़्वाबी यहाँ बोता है कौन
तिलिस्म-ख़ाना-ए-अस्बाब मेरे सामने था
वक़्त रुक रुक के जिन्हें देखता रहता है 'सलीम'
वो आँखें जिन से मुलाक़ात इक बहाना हुआ
कोई याद ही रख़्त-ए-सफ़र ठहरे कोई राहगुज़र अनजानी हो
कभी सितारे कभी कहकशाँ बुलाता है
देखते कुछ हैं दिखाते हमें कुछ हैं कि यहाँ