इंतिज़ार और दस्तकों के दरमियाँ कटती है उम्र
इतनी आसानी से तो बाब-ए-हुनर खुलता नहीं
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तिलिस्म-ख़ाना-ए-अस्बाब मेरे सामने था
मुलाक़ातों का ऐसा सिलसिला रक्खा है तुम ने
तुम ने सच बोलने की जुरअत की
तुम तो कहते थे कि सब क़ैदी रिहाई पा गए
लौ को छूने की हवस में एक चेहरा जल गया
साल की आख़िरी शब
अभी जो गर्दिश-ए-अय्याम से मिला हूँ मैं
आईना ख़ुद भी सँवरता था हमारी ख़ातिर
चश्म बे-ख़्वाब हुई शहर की वीरानी से
कैसे हंगामा-ए-फ़ुर्सत में मिले हैं तुझ से
मोहब्बत अपने लिए जिन को मुंतख़ब कर ले