जो मिरी रियाज़त-ए-नीम-शब को 'सलीम' सुब्ह न मिल सकी
तो फिर इस के मअ'नी तो ये हुए कि यहाँ ख़ुदा कोई और है
Anwar Masood
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न इस तरह कोई आया है और न आता है
किस की तहवील में थे किस के हवाले हुए लोग
वो आँखें जिन से मुलाक़ात इक बहाना हुआ
मुलाक़ातों का ऐसा सिलसिला रक्खा है तुम ने
तुम ने सच बोलने की जुरअत की
बहुत दिनों में कहीं हिज्र-ए-माह-ओ-साल के बाद
ऐ मिरे चारागर तिरे बस में नहीं मोआमला
वहाँ महफ़िल न सजाई जहाँ ख़ल्वत नहीं की
तुझे दुश्मनों की ख़बर न थी मुझे दोस्तों का पता नहीं
कभी इश्क़ करो और फिर देखो इस आग में जलते रहने से
साँस लेने से भी भरता नहीं सीने का ख़ला
कहानी लिखते हुए दास्ताँ सुनाते हुए