कहानी लिखते हुए दास्ताँ सुनाते हुए
वो सो गया है मुझे ख़्वाब से जगाते हुए
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तू सूरज है तेरी तरफ़ देखा नहीं जा सकता
क़दमों में साए की तरह रौंदे गए हैं हम
अब फ़ैसला करने की इजाज़त दी जाए
कुछ भी था सच के तरफ़-दार हुआ करते थे
जुनूँ तब्दीली-ए-मौसम का तक़रीरों की हद तक है
देखते कुछ हैं दिखाते हमें कुछ हैं कि यहाँ
मैं जानता हूँ मकीनों की ख़ामुशी का सबब
तिलिस्म-ख़ाना-ए-अस्बाब मेरे सामने था
ये लोग इश्क़ में सच्चे नहीं हैं वर्ना हिज्र
तुम ने सच बोलने की जुरअत की
इक घड़ी वस्ल की बे-वस्ल हुई है मुझ में