देखते कुछ हैं दिखाते हमें कुछ हैं कि यहाँ
कोई रिश्ता ही नहीं ख़्वाब का ताबीर के साथ
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जुनूँ तब्दीली-ए-मौसम का तक़रीरों की हद तक है
साँस लेने से भी भरता नहीं सीने का ख़ला
क़दमों में साए की तरह रौंदे गए हैं हम
दिल तुझे नाज़ है जिस शख़्स की दिलदारी पर
वक़्त रुक रुक के जिन्हें देखता रहता है 'सलीम'
कभी सितारे कभी कहकशाँ बुलाता है
जो मिरी रियाज़त-ए-नीम-शब को 'सलीम' सुब्ह न मिल सकी
हम ने तो ख़ुद से इंतिक़ाम लिया
ऐ मिरे चारागर तिरे बस में नहीं मोआमला
अभी हैरत ज़ियादा और उजाला कम रहेगा
आब ओ हवा है बरसर-ए-पैकार कौन है
मिलना न मिलना एक बहाना है और बस