वक़्त रुक रुक के जिन्हें देखता रहता है 'सलीम'
ये कभी वक़्त की रफ़्तार हुआ करते थे
Anwar Masood
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Javed Akhtar
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Gulzar
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मैं ने जो लिख दिया वो ख़ुद है गवाही अपनी
कभी इश्क़ करो और फिर देखो इस आग में जलते रहने से
याद कहाँ रखनी है तेरा ख़्वाब कहाँ रखना है
ख़ामोश सही मरकज़ी किरदार तो हम थे
पुकारते हैं उन्हें साहिलों के सन्नाटे
कुछ इस तरह से वो शामिल हुआ कहानी में
लौ को छूने की हवस में एक चेहरा जल गया
मोहलत न मिली ख़्वाब की ताबीर उठाते
तू सूरज है तेरी तरफ़ देखा नहीं जा सकता
रात को रात ही इस बार कहा है हम ने
क्या बताएँ फ़स्ल-ए-बे-ख़्वाबी यहाँ बोता है कौन
इक घड़ी वस्ल की बे-वस्ल हुई है मुझ में