वो जिन के नक़्श-ए-क़दम देखने में आते हैं
अब ऐसे लोग तो कम देखने में आते हैं
Wasi Shah
Anwar Masood
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Gulzar
Habib Jalib
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
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ख़ामोश सही मरकज़ी किरदार तो हम थे
ज़ोरों पे 'सलीम' अब के है नफ़रत का बहाव
जो मिरी रियाज़त-ए-नीम-शब को 'सलीम' सुब्ह न मिल सकी
हम ने तो ख़ुद से इंतिक़ाम लिया
कैसे हंगामा-ए-फ़ुर्सत में मिले हैं तुझ से
अब जो लहर है पल भर बाद नहीं होगी यानी
वो जो आए थे बहुत मंसब-ओ-जागीर के साथ
तुझ से बढ़ कर कोई प्यारा भी नहीं हो सकता
मैं ख़याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है
क़दमों में साए की तरह रौंदे गए हैं हम
मिरी रौशनी तिरे ख़द्द-ओ-ख़ाल से मुख़्तलिफ़ तो नहीं मगर
कभी मौसम साथ नहीं देते कभी बेल मुंडेर नहीं चढ़ती