ज़ोरों पे 'सलीम' अब के है नफ़रत का बहाव
जो बच के निकल आएगा तैराक वही है
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कभी इश्क़ करो और फिर देखो इस आग में जलते रहने से
कहानी लिखते हुए दास्ताँ सुनाते हुए
जुदाई भी न होती ज़िंदगी भी सहल हो जाती
अजनबी हैरान मत होना कि दर खुलता नहीं
मुझे सँभालने में इतनी एहतियात न कर
कोई याद ही रख़्त-ए-सफ़र ठहरे कोई राहगुज़र अनजानी हो
दिल तुझे नाज़ है जिस शख़्स की दिलदारी पर
कभी सितारे कभी कहकशाँ बुलाता है
साए गली में जागते रहते हैं रात भर
तुम ने सच बोलने की जुरअत की
मैं उसे तुझ से मिला देता मगर दिल मेरे
सरासर नफ़ा था लेकिन ख़सारा जा रहा है