जुदाई भी न होती ज़िंदगी भी सहल हो जाती
जो हम इक दूसरे से मसअला तब्दील कर लेते
Gulzar
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लय मोहब्बत की है आहंग सुख़न-साज़ का है
रात को रात ही इस बार कहा है हम ने
इंतिज़ार और दस्तकों के दरमियाँ कटती है उम्र
कहानी लिखते हुए दास्ताँ सुनाते हुए
साल की आख़िरी शब
अभी जो गर्दिश-ए-अय्याम से मिला हूँ मैं
तू ने देखा नहीं इक शख़्स के जाने से 'सलीम'
क़दमों में साए की तरह रौंदे गए हैं हम
दिल-ए-सीमाब-सिफ़त फिर तुझे ज़हमत दूँगा
'सलीम' अब तक किसी को बद-दुआ दी तो नहीं लेकिन
आईना ख़ुद भी सँवरता था हमारी ख़ातिर
पुराने साहिलों पर नया गीत