'सलीम' अब तक किसी को बद-दुआ दी तो नहीं लेकिन
हमेशा ख़ुश रहे जिस ने हमारा दिल दुखाया है
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तुम तो कहते थे कि सब क़ैदी रिहाई पा गए
वो जो आए थे बहुत मंसब-ओ-जागीर के साथ
तारे जो कभी अश्क-फ़िशानी से निकलते
इंतिज़ार और दस्तकों के दरमियाँ कटती है उम्र
अजनबी हैरान मत होना कि दर खुलता नहीं
इक घड़ी वस्ल की बे-वस्ल हुई है मुझ में
साए गली में जागते रहते हैं रात भर
कोई सच्चे ख़्वाब दिखाता है पर जाने कौन दिखाता है
क़ुर्बतें होते हुए भी फ़ासलों में क़ैद हैं
कभी सितारे कभी कहकशाँ बुलाता है
मिलना न मिलना एक बहाना है और बस
कहीं तुम अपनी क़िस्मत का लिखा तब्दील कर लेते