क़ुर्बतें होते हुए भी फ़ासलों में क़ैद हैं
कितनी आज़ादी से हम अपनी हदों में क़ैद हैं
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Habib Jalib
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Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Allama Iqbal
Wasi Shah
Rahat Indori
Gulzar
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तुझे दुश्मनों की ख़बर न थी मुझे दोस्तों का पता नहीं
इस आलम-ए-हैरत-ओ-इबरत में कुछ भी तो सराब नहीं होता
वो जो आए थे बहुत मंसब-ओ-जागीर के साथ
कहीं तुम अपनी क़िस्मत का लिखा तब्दील कर लेते
कभी सितारे कभी कहकशाँ बुलाता है
डूबने वाले भी तन्हा थे तन्हा देखने वाले थे
सफ़र की इब्तिदा हुई कि तेरा ध्यान आ गया
मैं ख़याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है
फिर जी उठे हैं जिस से वो इम्कान तुम नहीं
दुनिया अच्छी भी नहीं लगती हम ऐसों को 'सलीम'
न कोई नाम ओ नसब है न गोश्वारा मिरा
पुकारते हैं उन्हें साहिलों के सन्नाटे