लय मोहब्बत की है आहंग सुख़न-साज़ का है
हर नई नस्ल से रिश्ता मिरी आवाज़ का है
आसमाँ अपनी हदें खोल रहा है मुझ पर
तू कभी देख जो आलम मिरी परवाज़ का है
ये जो अब जा के ख़लिश होने लगी है दिल में
ऐसा लगता है कोई ज़ख़्म ये आग़ाज़ का है
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तारे जो कभी अश्क-फ़िशानी से निकलते
क़दमों में साए की तरह रौंदे गए हैं हम
जुदाई भी न होती ज़िंदगी भी सहल हो जाती
साल की आख़िरी शब
दस्त-ए-दुआ को कासा-ए-साइल समझते हो
आब ओ हवा है बरसर-ए-पैकार कौन है
अभी हैरत ज़ियादा और उजाला कम रहेगा
लौ को छूने की हवस में एक चेहरा जल गया
कभी मौसम साथ नहीं देते कभी बेल मुंडेर नहीं चढ़ती
तमाम उम्र सितारे तलाश करता फिरा
न कोई नाम ओ नसब है न गोश्वारा मिरा
डूबने वाले भी तन्हा थे तन्हा देखने वाले थे