मुझे सँभालने में इतनी एहतियात न कर
बिखर न जाऊँ कहीं मैं तिरी हिफ़ाज़त में
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तुम ने सच बोलने की जुरअत की
मैं किसी के दस्त-ए-तलब में हूँ तो किसी के हर्फ़-ए-दुआ में हूँ
दस्त-ए-दुआ को कासा-ए-साइल समझते हो
ऐ मिरे चारागर तिरे बस में नहीं मोआमला
कोई सच्चे ख़्वाब दिखाता है पर जाने कौन दिखाता है
हम ने तो ख़ुद से इंतिक़ाम लिया
न कोई नाम ओ नसब है न गोश्वारा मिरा
लौ को छूने की हवस में एक चेहरा जल गया
साँस लेने से भी भरता नहीं सीने का ख़ला
तमाम उम्र सितारे तलाश करता फिरा
ख़ामोश सही मरकज़ी किरदार तो हम थे