ऐ मिरे चारागर तिरे बस में नहीं मोआमला
सूरत-ए-हाल के लिए वाक़िफ़-ए-हाल चाहिए
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ये लोग इश्क़ में सच्चे नहीं हैं वर्ना हिज्र
एक तरफ़ तिरे हुस्न की हैरत एक तरफ़ दुनिया
वहाँ महफ़िल न सजाई जहाँ ख़ल्वत नहीं की
सफ़र की इब्तिदा हुई कि तेरा ध्यान आ गया
तुम ने सच बोलने की जुरअत की
कहानी लिखते हुए दास्ताँ सुनाते हुए
क़दमों में साए की तरह रौंदे गए हैं हम
ये आग लगने से पहले की बाज़-गश्त है जो
साल की आख़िरी शब
तुझे दुश्मनों की ख़बर न थी मुझे दोस्तों का पता नहीं
दस्त-ए-दुआ को कासा-ए-साइल समझते हो