ये आग लगने से पहले की बाज़-गश्त है जो
बुझाने वालों को अब तक धुआँ बुलाता है
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कहानी लिखते हुए दास्ताँ सुनाते हुए
वो आँखें जिन से मुलाक़ात इक बहाना हुआ
साए गली में जागते रहते हैं रात भर
बस इक रस्ता है इक आवाज़ और एक साया है
ग़ुबार होती सदी के सहराओं से उभरते हुए ज़माने
पुराने साहिलों पर नया गीत
चराग़-ए-याद की लौ हम-सफ़र कहाँ तक है
मैं किसी के दस्त-ए-तलब में हूँ तो किसी के हर्फ़-ए-दुआ में हूँ
रात को रात ही इस बार कहा है हम ने
भला वो हुस्न किस की दस्तरस में आ सका है
तारे जो कभी अश्क-फ़िशानी से निकलते