अब जो लहर है पल भर बाद नहीं होगी यानी
इक दरिया में दूसरी बार उतरा नहीं जा सकता
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अजनबी हैरान मत होना कि दर खुलता नहीं
मिलना न मिलना एक बहाना है और बस
तुझे दुश्मनों की ख़बर न थी मुझे दोस्तों का पता नहीं
क़ुर्बतें होते हुए भी फ़ासलों में क़ैद हैं
चराग़-ए-याद की लौ हम-सफ़र कहाँ तक है
बदल गया है सभी कुछ उस एक साअत में
कैसे हंगामा-ए-फ़ुर्सत में मिले हैं तुझ से
वो जो हम-रही का ग़ुरूर था वो सवाद-ए-राह में जल-बुझा
ज़ोरों पे 'सलीम' अब के है नफ़रत का बहाव
मैं ख़याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है
याद का ज़ख़्म भी हम तुझ को नहीं दे सकते