मैं जानता हूँ मकीनों की ख़ामुशी का सबब
मकाँ से पहले दर-ओ-बाम से मिला हूँ मैं
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तिलिस्म-ख़ाना-ए-अस्बाब मेरे सामने था
कोई सच्चे ख़्वाब दिखाता है पर जाने कौन दिखाता है
ख़ामोश सही मरकज़ी किरदार तो हम थे
साँस लेने से भी भरता नहीं सीने का ख़ला
मिलना न मिलना एक बहाना है और बस
हम ने तो ख़ुद से इंतिक़ाम लिया
किस की तहवील में थे किस के हवाले हुए लोग
सरासर नफ़ा था लेकिन ख़सारा जा रहा है
जुनूँ तब्दीली-ए-मौसम का तक़रीरों की हद तक है
वो आँखें जिन से मुलाक़ात इक बहाना हुआ
दिल-ए-सीमाब-सिफ़त फिर तुझे ज़हमत दूँगा
याद कहाँ रखनी है तेरा ख़्वाब कहाँ रखना है