अंतरिक्ष Poetry (page 2)

ख़ला में बंदर

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

एक मुजस्समे की ज़ियारत

सय्यद काशिफ़ रज़ा

क्यूँ फ़ना से डरें बक़ा क्या है

सय्यद हामिद

इक ख़ला है जो पुर नहीं होता

सय्यद अमीन अशरफ़

जब सफ़र को मैं ने थामा था ये अंधा रास्ता

सय्यद अहमद शमीम

सिर्फ़ थोड़ी सी है अना मुझ में

सुहैल अख़्तर

कब करोगे हमारा इस्तिक़बाल

सुबोध लाल साक़ी

वो नग़्मगी का ज़ाइक़ा उस की सदा में था

सोहन राही

इक रौशनी का ज़हर था जो आँख भर गया

सोहन राही

ले उड़े ख़ाक भी सहरा के परस्तार मिरी

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

ग़ाज़ा तो तिरा उतर गया था

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

उदासी के दलदल में गिरता हुआ दिल

शुमाइला बहज़ाद

शोर थमने के बाद

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

माह-ए-मुनीर

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

ज़ेर-ए-ज़मीं दबी हुई ख़ाक को आसाँ कहो

शमीम हनफ़ी

रोज़ ओ शब की गुत्थियाँ आँखों को सुलझाने न दे

शमीम हनफ़ी

जो चेहरे के बाहर है वो अंदर न मिलेगा

शमीम अनवर

ज़िंदगी को हम वफ़ा तक वो जफ़ा तक ले गए

शहज़ाद क़मर

ख़बर नहीं कि ख़ला किस जगह पे हो मौजूद

शहज़ाद अहमद

ज़हरीली तख़्लीक़

शहज़ाद अहमद

तिरी तलाश तो क्या तेरी आस भी न रहे

शहज़ाद अहमद

जब आफ़्ताब न निकला तो रौशनी के लिए

शहज़ाद अहमद

देख अब अपने हयूले को फ़ना होते हुए

शहज़ाद अहमद

अस्ल में हूँ मैं मुजरिम मैं ने क्यूँ शिकायत की

शहज़ाद अहमद

वो कौन था

शहरयार

फिर सफ़र बे-सम्त बे-मंज़िल हुआ

शहरयार

नया उफ़क़

शहरयार

मेरी ज़मीं

शहरयार

एक ख़ुश-ख़बरी

शहरयार

मा'बद-ए-ज़ीस्त में बुत की मिसाल जड़े होंगे

शहरयार

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