अंतरिक्ष Poetry (page 6)

मेरी कोई तारीफ़ नहीं है मैं वक़्फ़ों वक़्फ़ों में हूँ

फ़रहत एहसास

कैसी बला-ए-जाँ है ये मुझ को बदन किए हुए

फ़रहत एहसास

अपने ख़ला में ला कि ये तुम को दिखा रहा हूँ मैं

फ़ैज़ान हाशमी

पाया न कुछ ख़ला के सिवा अक्स-ए-हैरती

एजाज़ गुल

ज़रा बतला ज़माँ क्या है मकाँ के उस तरफ़ क्या है

एजाज़ गुल

पेचाक-ए-उम्र अपने सँवार आइने के साथ

एजाज़ गुल

जो क़िस्सा-गो ने सुनाया वही सुना गया है

एजाज़ गुल

दर खोल के देखूँ ज़रा इदराक से बाहर

एजाज़ गुल

शुऊर-ए-नौ-उम्र हूँ न मुझ को मता-ए-रंज-ओ-मलाल देना

एहतिशामुल हक़ सिद्दीक़ी

मर्दुम-गज़ीदा इंसान का इलाज

दिलावर फ़िगार

लंदन में जश्न-ए-ग़ालिब

दिलावर फ़िगार

तमन्ना का दूसरा क़दम

दानियाल तरीर

कथार्सिस

दानियाल तरीर

ख़ामोशी की क़िर्अत करने वाले लोग

दानियाल तरीर

असर ज़ुल्फ़ का बरमला हो गया

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

जो है चश्मा उसे सराब करो

बकुल देव

आख़िरी दिन से पहले

अज़ीज़ क़ैसी

बेगम से कह रहा था ये कोई ख़ला-नवर्द

अज़ीज़ फ़ैसल

टटोलता हुआ कुछ जिस्म ओ जान तक पहुँचा

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

ख़ाक ओ ख़ला का हिसार और मैं

अज़ीज अहमद ख़ाँ शफ़क़

वो रूह के गुम्बद में सदा बन के मिलेगा

आज़ाद गुलाटी

सरहद-ए-जिस्म से बाहर कहीं घर लिक्खा था

आज़ाद गुलाटी

सरहद-ए-जिस्म से बाहर कहीं घर लिक्खा था

आज़ाद गुलाटी

मोहब्बत का एक साल

अय्यूब ख़ावर

नुमू-पज़ीर हूँ हर दम कि मुझ में दम है अभी

अता तुराब

तुम भटक जाओ तो कुछ ज़ौक़-ए-सफ़र आ जाएगा

आसिम वास्ती

और अब ये दिल भी मेरा मानता है

अासिफ़ शफ़ी

लहू के साथ तबीअत में सनसनाती फिरे

अरशद मलिक

वहाँ मैं नहीं थी

आरिफ़ा शहज़ाद

अकेले क्या पस-ए-दीवार-ओ-दर गए हम तुम

अनवर शऊर

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