डर Poetry (page 16)

नज़्म

गोपाल मित्तल

रंगीनी-ए-हवस का वफ़ा नाम रख दिया

गोपाल मित्तल

उम्मीद की सूखती शाख़ों से सारे पत्ते झड़ जाएँगे

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

सोते हैं वो आईना ले कर ख़्वाबों में बाल बनाते हैं

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

गलियों की उदासी पूछती है घर का सन्नाटा कहता है

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

अकेला दिन है कोई और न तन्हा रात होती है

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

ख़ुदा से डरते तो ख़ौफ़-ए-ख़ुदा न करते हम

ग़ुलाम मौला क़लक़

तेरे वादे का इख़्तिताम नहीं

ग़ुलाम मौला क़लक़

सामान-ए-ऐश सारा हमें यूँ तू दे गया

ग़ज़नफ़र

मुख़्तसर सी बात को भी मसअला कहते रहे

ग़ौसिया ख़ान सबीन

सरापा रेहन-इश्क़-ओ-ना-गुज़ीर-उल्फ़त-हस्ती

ग़ालिब

मिलती है ख़ू-ए-यार से नार इल्तिहाब में

ग़ालिब

लूँ वाम बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता से यक-ख़्वाब-ए-खुश वले

ग़ालिब

हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है

ग़ालिब

इस बात को वैसे तो छुपाया न गया है

गौतम राजऋषि

इक ख़ौफ़ सा दरख़्तों पे तारी था रात-भर

फ़ुज़ैल जाफ़री

दिल मुतमइन है हर्फ़-ए-वफ़ा के बग़ैर भी

फ़ुज़ैल जाफ़री

अभी निकलो न घर से तंग आ के

फ़िराक़ जलालपुरी

रातों के ख़ौफ़ दिन की उदासी ने क्या दिया

फ़ज़्ल ताबिश

कभी याद-ए-ख़ुदा कभी इश्क़-ए-बुताँ यूँही सारी उम्र गँवा बैठा

फ़य्याज़ तहसीन

समुंदर सर पटक कर मर रहा था

फ़े सीन एजाज़

जाता है जो घरों को वो रस्ता बदल दिया

फ़ातिमा हसन

सुराग़ भी न मिले अजनबी सदा के मुझे

फ़रियाद आज़र

इसी फ़ुतूर में कर्ब-ओ-बला से लिपटे हुए

फ़रियाद आज़र

था अबस ख़ौफ़ कि आसेब-ए-गुमाँ मैं ही था

फ़र्रुख़ जाफ़री

पौ फटी एक ताज़ा कहानी मिली

फ़ारूक़ शफ़क़

हिसार-ए-ख़ौफ़-ओ-हिरास में है बुतान-ए-वहम-ओ-गुमाँ की बस्ती

फ़ारूक़ नाज़की

मौत

फ़ारूक़ नाज़की

बस्ती से दूर जा के कोई रो रहा है क्यूँ

फ़ारूक़ नाज़की

ये गर्द-ए-राह ये माहौल ये धुआँ जैसे

फ़ारूक़ मुज़्तर

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