खेल Poetry (page 11)

बे-मसरफ़ रिश्तों की फ़राग़त

अंजुम सलीमी

रक़्स-ए-जुनूँ की गर्मी-ए-तासीर देखना

अंजुम इरफ़ानी

अनजाने ख़्वाब की ख़ातिर क्यूँ चैन गँवाया

अंजुम अंसारी

काम इश्क़-ए-बे-सवाल आ ही गया

आनंद नारायण मुल्ला

रात से जंग कोई खेल नईं

अम्मार इक़बाल

थे ख़्वाब एक हमारे भी और तुम्हारे भी

अमजद इस्लाम अमजद

शाम ढले जब बस्ती वाले लौट के घर को आते हैं

अमजद इस्लाम अमजद

दुनिया को जब नज़दीकी से देखा है

अमित शर्मा मीत

इल्तिजा

आमिर उस्मानी

बदन के लुक़्मा-ए-तर को हराम कर लिया है

अमीर हम्ज़ा साक़िब

आईना-ख़ाने के क़ैदी से

अमीक़ हनफ़ी

क्या बताएँ कहाँ कहाँ थे फूल

अमीन राहत चुग़ताई

कुछ हँसी खेल सँभलना ग़म-ए-हिज्राँ में नहीं

अल्ताफ़ हुसैन हाली

वाँ अगर जाएँ तो ले कर जाएँ क्या

अल्ताफ़ हुसैन हाली

धूप के साए

अल्ताफ़ गौहर

इबलीस की मजलिस-ए-शूरा

अल्लामा इक़बाल

अपनी जौलाँ-गाह ज़ेर-ए-आसमाँ समझा था मैं

अल्लामा इक़बाल

मेरा सफ़र

अली सरदार जाफ़री

पुर्सा

अली साहिल

ख़सारा-दर-ख़सारा कर लिया जाए

अली मुज़म्मिल

टूटम टूट गया

अली मोहम्मद फ़र्शी

मस्ती-ए-गाम भी थी ग़फ़लत-ए-अंजाम के साथ

अली जव्वाद ज़ैदी

कसे कजावे महमिलों के और जागा रात का तारा भी

अली अकबर नातिक़

चराग़ शाम से आख़िर जलाएँ किस के लिए

अलीम उस्मानी

थपक थपक के जिन्हें हम सुलाते रहते हैं

आलम ख़ुर्शीद

हम को लुत्फ़ आता है अब फ़रेब खाने में

आलम ख़ुर्शीद

तर्ग़ीब और उस के ब'अद

अख़्तर-उल-ईमान

कार-नामा

अख़्तर-उल-ईमान

बुलावा

अख़्तर-उल-ईमान

उन रस भरी आँखों में हया खेल रही है

अख़्तर शीरानी

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