कार-नामा

अज़ीम काम करूँ कोई एक दिन सोचा

कि रहती दुनिया में अपना भी नाम रह जाए

मगर वो काम हो क्या ज़ेहन में नहीं आया

पयम्बरी तो ज़ियाँ जान का है दावा क्या

तू जाने सूली पे चढ़ना हो या चलें आरे

कि ज़िंदा आग की लपटों की नज़्र होना पड़े

ख़याल आया फ़ुनून-ए-लतीफ़ा ढेरों हैं

सनम-तराशी है नग़्मागरी कि नक़्क़ाशी

ये सब ही दाइमी शोहरत का इक वसीला हैं

मगर न लफ़्ज़ों पे क़ुदरत न रंग क़ाबू में

फिर इक ज़रिया सियासत है नाम पाने का

अलावा नाम के मोहरे बना के लोगों को

बिसात-ए-अर्ज़ पे शतरंज खेल सकते हैं

मगर ये फ़न भी मिरी दस्तरस से बाहर था

फिर और क्या हो बहुत कुछ ख़याल दौड़ाया

अलावा इन के मुझे और कुछ नहीं सूझा

ज़माने बाद समुंदर किनारे बैठा था

अज़ीम शय है समुंदर भी मेरे दिल ने कहा

वो क्या तरीक़ा हो मैं इस का भाग बन जाऊँ

समझ में आया नहीं कोई रास्ता भी जब

तो झुँझला के समुंदर में कर दिया पेशाब

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Kar-nama In Hindi By Famous Poet Akhtar-ul-Iman. Kar-nama is written by Akhtar-ul-Iman. Complete Poem Kar-nama in Hindi by Akhtar-ul-Iman. Download free Kar-nama Poem for Youth in PDF. Kar-nama is a Poem on Inspiration for young students. Share Kar-nama with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.