खेल Poetry (page 3)

भूली-बिसरी रात

तख़्त सिंह

इसे मैं और ये मेरा असा ही तय करेगा

तहसीन फ़िराक़ी

गोशे बदल बदल के हर इक रात काट दी

ताहिर फ़राज़

अजीब हम हैं सबब के बग़ैर चाहते हैं

ताहिर फ़राज़

मंज़िल मिले न कोई भी रस्ता दिखाई दे

सय्यदा नफ़ीस बानो शम्अ

मिल जाएँ अज़दहाम में हम ही ये हम से दूर

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

इतनी मुद्दत बा'द मिले हो कुछ तो दिल का हाल कहो

सय्यद शकील दस्नवी

थर्ड-डिवीज़न

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

इम्तिहान

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

मैं ने माना कि मुलाक़ात नहीं हो सकती

सय्यद मोहम्मद असकरी आरिफ़

इजतिमाई मुबाशरत

सय्यद काशिफ़ रज़ा

ठीक है उजली याद का रिश्ता अपने दिल से टूटा भी

सय्यद अारिफ़

या कभी आशिक़ी का खेल न खेल

सय्यद आबिद अली आबिद

हाँ धनक के रंग सारे खुल गए

स्वप्निल तिवारी

गंगा जी

सुरूर जहानाबादी

ज़रूरी कब है कि हर काम इख़्तियारी करें

सुहैल अख़्तर

जैसा हमें गुमान था वैसा नहीं रहा

सुहैल अहमद ज़ैदी

ये मकीं क्या ये मकाँ सब ला-मकाँ का खेल है

शुजाअत इक़बाल

निकलने वाले न थे ज़िंदगी के खेल से हम

शोज़ेब काशिर

बिछड़ गए थे किसी रोज़ खेल खेल में हम

शोज़ेब काशिर

खेल

शोरिश काश्मीरी

हर-चंद सहारा है तिरे प्यार का दिल को

शोहरत बुख़ारी

यहाँ रहने में दुश्वारी बहुत है

शोएब निज़ाम

हैबत-ए-हुस्न से अल्फ़ाज़ की हैरानी तक

शोएब निज़ाम

शाम के ढलते सूरज ने ये बात मुझे समझाई है

शायान क़ुरैशी

था बंद वो दर फिर भी मैं सौ बार गया था

शौक़ क़िदवाई

शब-हाए-ऐश का वो ज़माना किधर गया

शौक़ देहलवी मक्की

बिखरे तो फिर बहम मिरे अज्ज़ा नहीं हुए

शाैकत वास्ती

बिखरे तो फिर बहम मिरे अज्ज़ा नहीं हुए

शाैकत वास्ती

जीत गया जीत गया

शारिक़ कैफ़ी

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