या कभी आशिक़ी का खेल न खेल
या अगर मात हो तो हाथ न मल
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मुझे धोका हुआ कि जादू है
चैन पड़ता है दिल को आज न कल
ये हादिसा भी हुआ है कि इश्क़-ए-यार की याद
साक़िया है तिरी महफ़िल में ख़ुदाओं का हुजूम
वाइज़-ए-शहर ख़ुदा है मुझे मा'लूम न था
ऐ इल्तिफ़ात-ए-यार मुझे सोचने तो दे
गर्दिश-ए-जाम नहीं रुक सकती
चाँद सितारों से क्या पूछूँ कब दिन मेरे फिरते हैं
जल्वा-ए-यार से क्या शिकवा-ए-बेजा कीजे
वो मुझे मश्वरा-ए-तर्क-ए-वफ़ा देते थे
गुलों की ख़ूँ-शुदगी को शगुफ़्तगी न समझ